परछाई,महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी, अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी, समीर को न गिला न शिकवा होगा, ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | जब ये कायनात डग - मग डोलेगी , फुर से चिड़िया दाना चुगकर, खुले आसमां में छम - छम तेरेगी , तुम ताकते रहना नदी किनारे, मछली सारे रजिया के राज खोलेगी | कलियों की कहानी पुरानी हो गई, अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई, शबनम से अब हाला नहीं भरेगी, शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी | तुम आइना क्यों देखते हो- महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी, थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों, इनकी कदम - कदम पर जरुरत पड़ेगी | एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी, अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी