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Midnight Romance With Sheet In Rainfall

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सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात... चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक, और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे, यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे, उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई, अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी, आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई | सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात... फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा, बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई, धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई, कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर, बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की, बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई | सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात... कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता, कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता, और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते, मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई | सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात... कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती, कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता, और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते, मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई | सर्द बरसात की वो काली ...

हाय : तेरे होठों की लाली

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तीर नयन के मारे थे, हम पर कितने किये इशारे थे, कितने तुम्हारे चहिते, कितने तुम्हारे प्यारे थे, उम्र थी वह बाली, हाय ! तेरे होठों की लाली... मन के आँगन में, सपनो के दामन में, खिले-खिले यौवन में, लगती थी शराब की प्याली, हाय ! तेरे होठों की लाली... वो आँखों का नशिलापन, हाथों में खनकते सतरंगी कंगन, गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन, और नाक पर बलखाती बाली, हाय ! तेरे होठों की लाली... चाल में तेरी वो लचीलापन, यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन, उस पर पायलों की बजती छन-छन, और वो अदा तेरी मतवाली, कसम से लगती थी कच्ची कली, हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!! रोमांटिक कविताओं के लिय यहाँ क्लिक करें

वो यूँही नही भीगने लगी,उसने कुछ तो सोचा होगा

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वो यूहीं नहीं भीगने लगी बरसातों में , शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा , एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं कजरा लगाने लगी आँखों में , शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा , ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे   यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं लाली लगाने लगी लबों पे , शायद होटों ने उसे उकसाया होगा , मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं गजरा लगाने लगी गेसुओं में , शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा , क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं मटक कर चलने लगी राहों में , शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा , वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा.... अरुण "अज्ञात" पंचोली सम्बंधित लेख -  विडियो: राजनीति में रसीले नेताओं की रंगीन रासलीला वैश्यावृत्ति : मज़बूरी का शिकार या पापी प्यासी हवस माता हरी:एक जासूस,डांसर,र...