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सिसकती साँसों से पूछो,मेरा क्या है?

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सिसकती साँसों से पूछो , वक्त का पहरा क्या है ? रजनी लपेटे सफेदी में , शशि में इतना , गहरा क्या है ? है भान नभ के , भानु प्रताप को , लबों पे लालिमा लिए , सवेरा क्या है ? क्यूँ गुलशन करता , नाज इतना शुलों पे , है एहसास गुलों को , भंवरों का पहरा क्या है ? क्षितिज को साहिलों से मिलाती , सागर पे लहराती , सरगम - सी लहरों का , बसेरा क्या है ? माटी से माटी तक का सफ़र , जानता है सिर्फ वो कुम्हार कि इस खोखले खिलौने का , चेहरा क्या है?

उठो लल्लू दारु लाया कुल्ला कर लो

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                                    उठो लल्लू               अब आँखे खोलो                 दारू लाया                 कुल्ला कर लो           बीती रात बहुत चड़ाई          तुमने की ना रत्ती भर पढाई          एक्ज़ाम का वक्त है भाई         खोलो पोथी पुस्तक          २-४ आखर पडलो साईं            टॉप तो मार ना पाओगे           चिट नहीं बनाई तो            ...

जाने किस बरसात,बुझेगी मेरी प्यास

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उसकी याद दिलाती हे , उसका चेहरा बताती हे, मंद-मंद बहते हुए यूँ गुनगुनाती हे उसका नाम, ये ढलती हुई शाम | उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे, उसके प्यार का एहसास दिलाती हे, चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ मुजको सुनाती हे उसका पैगाम, ये ढलती हुई शाम | धीरे-धीरे से ढलती जाती हे, उसका हर हाले दिल सुनाती हे, कभी मै ना मिलूं उसको तो   यूँ  मचा देती हे भयंकर कोहराम, ये ढलती हुई शाम | किरणों में उसकी आँखे चमकती हे, हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे, ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम, ये ढलती हुई शाम | मुज पर शबनम-सी छा जाती हे, मुझे अपने में समाँ लेती हे , हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम, ये ढलती हुई शाम |

काश,मेरे सिने में भी दिल होता पारो

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काश, की मेरे सिने में भी दिल होता, मेरे ना सही, किसी और के सिने में धड़कता, उसके एहसासों का मनचला मंज़र, यूँ मेरी साँसों की लहरों से गुजरता, वो आंहें भरती तन्हाई में और मुझे उसकी महफ़िल का खुमार होता, काश, की मेरे सिने में भी दिल होता...! वो सोती मेरे ख्यालों की सेज पर, उसके ख्वाबों का कारवाँ मेरी आँखों में होता, काली-काली घनेरी घनघोर रातों में, प्यार भरी रोशनी से रोशन सिलसिला होता, काश, की मेरे सिने में भी दिल होता...!