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Human Nature: फर्श से अर्श तलक का फासला

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human nature and philosophy फर्श से अर्श तलक का ये विचित्र-सा फासला बार-बार अनवरत यह सोचने पर बेचैन करता है,कि मानवता की इस श्रृंखला को किन सर्वस्व अवधारणाओं से परिभाषित करूँ या चिन्हित करूँ | महज मुखोटों की तर्ज़ पर या फिर ह्रदय-स्थल की भावभंगिमाओं पर मानवता रूपी इश्वर की इस तिलिस्मी और बेहद पेचीदा कलाकृति का आंकलन या अवलोकन नहीं किया जा सकता | जहां तथाकथिक इश्वर को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ने अपना पालनहार माना है वहीँ इश्वर ने एहसासों और विश्वासों को आधारबिन्दु घोषित कर खुद के होने का प्रमाण अवतरित किया है |  इतिहास के गर्भ को अगर हम याद करे तो मानव भी कभी जानवर था यह वर्तमान में स्वघोषित कटु सत्य नकारा नहीं जा सकता | और बड़ी दिलचस्प बात यह भी है की हमने यानि मानव ने प्रगति की मगर कैसी प्रगति ? यह प्रश्न अपने आप में एक पहेली है | एक तरफ जहाँ हम अन्य जिव-जंतुओं को भी प्राकृतिक तौर पर जानवर मानते है वहीँ दूसरी तरफ कभी-कभी हम इन जानवरों को मानसिक,शारीरिक और भावनात्मक पहलुओं में नाप-तौल कर मानव से ज्यादा समझदार और वफादार मानते है | बड़ी ही विचित्र और शर्मोशार कर देने वाली मगर सो टका सर्वमान्...