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दास्ताने-दिनकर : युगों-युगों से सिने में आग लिए

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ClicK Me FoR WoW VideO... युगों - युगों से सिने में आग लिए , मैं पल - पल जलता - पिघलता हूँ , किसे सुनाऊं " दास्ताने - दिनकर ", कैसे सांझ - सवेरे ढलता निकलता हूँ | चन्दा - चकोरी की , प्रेम कहानी जग जाने , टूटते तारों पे मन्नतें , मांगते है ये जमाने , कोई ज़र्रा नहीं जो , मेरे गमो से रूबरू हो जाए , इस महफ़िल में तो , सब चाँद - तारों के है दीवाने | क्या खूब जिंदगी तूने , मुझे अता की है मेरे मौला , शबनम का नामो - निशाँ नहीं , तूने मेरे एहसासों में घोला , बना दिया तूने मेरी , सूरत - सीरत को आग का गोला , बस दहकता रहता है , मेरे रोम - रोम में शोला ही शोला | मोती ममता के क्या होते है , पलकों पर सपने कैसे सोते है , भूख - प्यास क्या होती है , आँखे भर - भर आंसू कैसे रोती है , इनको महसूस नहीं कर पाता हूँ , पत्थर से भी नीरस जिंदगी बिताता हूँ , किसे सुनाऊं " दास्ताने - दिनकर ",   कैसे सांझ - सवेरे ढलता निकलता हूँ | ClicK Me FoR WoW VideO...