दास्ताने-दिनकर : युगों-युगों से सिने में आग लिए




युगों-युगों से सिने में आग लिए,

मैं पल-पल जलता-पिघलता हूँ,
किसे सुनाऊं"दास्ताने-दिनकर",
कैसे सांझ-सवेरे ढलता निकलता हूँ |




चन्दा-चकोरी की,
प्रेम कहानी जग जाने,
टूटते तारों पे मन्नतें,
मांगते है ये जमाने,
कोई ज़र्रा नहीं जो,
मेरे गमो से रूबरू हो जाए,
इस महफ़िल में तो,
सब चाँद-तारों के है दीवाने |

क्या खूब जिंदगी तूने,
मुझे अता की है मेरे मौला,
शबनम का नामो-निशाँ नहीं,
तूने मेरे एहसासों में घोला,
बना दिया तूने मेरी,
सूरत-सीरत को आग का गोला,
बस दहकता रहता है,
मेरे रोम-रोम में शोला ही शोला |

मोती ममता के क्या होते है,
पलकों पर सपने कैसे सोते है,
भूख-प्यास क्या होती है,
आँखे भर-भर आंसू कैसे रोती है,
इनको महसूस नहीं कर पाता हूँ,
पत्थर से भी नीरस जिंदगी बिताता हूँ,
किसे सुनाऊं"दास्ताने-दिनकर",
  कैसे सांझ-सवेरे ढलता निकलता हूँ|







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