वो यूँही नही भीगने लगी,उसने कुछ तो सोचा होगा

वो यूहीं नहीं भीगने लगी बरसातों में , शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा , एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं कजरा लगाने लगी आँखों में , शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा , ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों पे यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं लाली लगाने लगी लबों पे , शायद होटों ने उसे उकसाया होगा , मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं गजरा लगाने लगी गेसुओं में , शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा , क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा ! वो यूहीं नहीं मटक कर चलने लगी राहों में , शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा , वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों , उसने कुछ तो सोचा होगा , उसने कुछ तो सोचा होगा.... अरुण "अज्ञात" पंचोली सम्बंधित लेख - विडियो: राजनीति में रसीले नेताओं की रंगीन रासलीला वैश्यावृत्ति : मज़बूरी का शिकार या पापी प्यासी हवस माता हरी:एक जासूस,डांसर,र...