काली रातों के शैतान :ऐसा क्या हुआ उस रात



शायद आप सोच रहे होंगे कि यह कहानी मनगड़ंत होगी, पर यह घटना सौ फीसदी सच है...हमारे परिचित है जेतपुरी भाई, जो आयल पेंटिंग का काम करते है, यह उनकी आप बीती है... हुआ यूँ कि जेतपुरी भाई को एक फैक्ट्री में आयल पेंटिंग करने का काम मिला, यूँ तो पहले भी वे उस फैक्ट्री में काम कर चुके थे, अतः वे उस जगह से अंजान नहीं थे, पर ये ठेका अर्जेंट था, फैक्ट्री विजिट्स के लिए फॉरेन से क्लाईंट आने वाले थे, अतः रात-दिन एक कर हफ्ते भर में काम पूरा करना था.

फैक्ट्री बहुत बड़ी थी, लगभग एक-डेढ़ एकड़ में फैली...जेतपुरी भाई ने काम चालु कर दिया...पर रात के सन्नाटे में उनकी हालत बहुत बुरी हो जाती...चारों तरफ एक सन्नाटा मन को आतंकित-सा कर देता... और सन्नाटे को चीरती किसी के कदमो की आहट...ऐसा लगता जैसे कोई जीना (चड़ाव) चढ़-उतर रहा हो.बड़ी-बड़ी मशीने अपने-आप ही चालु हो जाती और खुद ही बंद हो जाती, बंद बल्ब स्वतः ही चालु हो जाते. फैक्ट्री में उनके अलावा कोई नहीं था...पर उनको यह खुशफ़हमी थी, शायद फैक्ट्री ने किसी कर्मचारी को नाईट ड्यूटी पर रख रखा है, या टेक्निकल खराबी की वजह से यह सब हो रहा है...

यह सब सोचकर दो-तीन दिन बाद वे दिन में ऊपर फैक्ट्री में बने ऑफिस की ओर जाने लगे, तभी तेजी से चड़ाव उतरकर फैक्ट्री का अकाउंटेंट भूत-भूत चिल्लाते हुए आया और तुरंत ही उस फैक्ट्री से भाग गया. यह देख जेतपुरी भाई के दिमाग में हथोड़े बरसने लगे...वहां के कर्मचारियों से गुफ्तगू करने पर उन्हें पता चला कि उस जगह पर किसी प्रेतात्मा का साया है, जो अक्सर मशीने और लाइट चालू करता है, अतः इस वजह से रात में कोई भी फैक्ट्री में काम करने के लिए नहीं रुकता...
यह सुन जेतपुरी भाई का तो हलक ही सुख गया...कि अब वे करे तो क्या करे पर उनका कुछ काम तो अभी भी शेष रह गया था, और फैक्ट्री मालिक से उन्होंने अडवांस भी ले लिया था... घर की परिस्थितियाँ भी इज़ाज़त नहीं देती थी कि वह काम छोड़ दे...अतः मरता क्या ना करता...उन्होंने एक रात में ही काम फिनिश करने की सोची |



जेतपुरी भाई रात के गहन सन्नाटे में काम कर रहे थे...हवा तक नहीं चल रही थी, पसीने से उनका चेहरा तरबतर था...पर गरीबी का जुनून उनको काम करने का होसला दिए जा रहा था, तभी उन्हें फड़-फड़ करती आवाज़ सुनाई दी... जो उनके पेंटिंग करने की लय को बिगाड़ रही थी उन्होंने सिर उठाकर देखा तो उनके होश उड़ गए... एक दुपट्टेनुमा बड़ा लाल कपड़ा हवा में उड़ रहा था...वो एक साए सा जान पड़ रहा था, जो फैक्ट्री के बड़े से हॉल में इधर से उधर हवा में लहराता हुआ आ-जा रहा था, जबकि हवा का तो वहां नामोनिशान नहीं था.

यह दृश्य देखकर उनका तो सिर ही घूम गया और वे वहीँ बेहोंश हो गए. सुबह उन्होंने खुद को फैक्ट्री के कर्मचारियों के बीच घिरा हुआ पाया. उन्होंने फैक्ट्री मालिक को स्पष्ट कह दिया कि अब वे रात को फैक्ट्री में काम नहीं कर पायेंगे, भई...जान तो सब को प्यारी होती है, यहाँ तक कि उन्होंने अब रात में काम लेने से तौबा कर ली है. जब जेतपुरी भाई ने अपनी यह भयावह दुर्घटना हमें सुनाई तो, हकीकत सुनते हुए हमारे भी रोंगटे खड़े हो गए...आप मानो या ना मानो...!!! 

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