रोचक कहानी : काल भैरव को कैसे मिली ब्रह्मा हत्या से मुक्ति


हम सभी जानते है कि शिवशंकर भोलेनाथ के अनेक अवतार हुए है, स्वयं भैरव महाराज भी उनके अवतार माने जाते है. पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि उनकी उत्पत्ति या जन्म की क्या कहानी है? 



हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ स्कन्दपुराण में यह बताया गया है कि महर्षि अगत्स्य ने भगवान् शिव शम्भू के पुत्र गणेश के बड़े भाई कार्तिकेय से प्रार्थना की कि वे उन्हें रूद्र अवतार भैरव जी की कथा बताए. उनकी विनती स्वीकार करते हुए कार्तिकेय ने इस प्रकार कथा कही है....एक बार सुमेरु पर्वत पर ब्रह्माजी के साथ अनेक देवतागण धार्मिक चर्चा में मग्न थे, उसी समय यह प्रश्न उठा कि तीनो त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ व् सर्वशक्तिमान कौन है ? 



जब यह प्रश्न विवादास्पद हो गया तो सभी देवतागण सटीक उत्तर की आशा से ब्रह्माजी को देखने लगे, किन्तु स्वयं ब्रह्माजी भी अहंकार के वशीभूत होकर त्रिदेवो में स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे, यह सब भोले नाथ की माया का ही परिणाम था. उन्होंने कहा कि मै ही सम्पूर्ण सृष्टि का का निर्माता हूँ,मै ही पालनहार हूँ और मै ही संहारकर्ता हूँ. उसी समय त्रिलोक के पालनकर्ता भगवान् श्री हरी के अंश रूप ऋतुदेव भी वहां उपस्थित थे, उन्होंने इस बात का विरोध करते हुए कहा कि तुम से श्रेष्ठ तो मै स्वयं हूँ, क्यूंकि सृष्टि को चलाने वाले श्री हरी विष्णुजी की ज्योति मै ही हूँ,संसार को पालने वाला भी मै ही हूँ, मेरी इच्छा से तुम इस संसार का निर्माण करते हो अतः तुमसे श्रेष्ठ मै हूँ, और दोनों आपस में विवाद करने लगे, तो देवगणों ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया. 

Source ... Gyan Darshan


किन्तु जब विवाद शांत ना हुआ तो देवताओं ने कहा कि चारों वेद अत्यंत प्राचीन है,उन्हीं से चलकर पूछा जाए कि कौन श्रेष्ठ है? चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद थे. ऋग्वेद ने कहा कि शिव ही सबसे शक्तिशाली है, यह सम्पूर्ण संसार उनमे ही समाया हुआ है, तीनो वेदों ने इस बात का समर्थन किया,इतने पर भी ब्रह्माजी का अज्ञानता से भरा क्रोध शांत नहीं हुआ, उसी समय प्रणव ब्रम्हाजी के सम्मुख उपस्थित होकर उनको समझाने लगे कि भगवान् शंकर ही इस संसार की सनातन ज्योति है. किन्तु इतने पर भी मद में भरे ब्रह्मा जी शांत नहीं हुए वो और ऋतुदेव और ज्यादा क्रोधित होकर आपस में लड़ने लगे. ठीक उसी समय ब्रम्हाजी और ऋतु के मध्य एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ, जिसने सभी देवताओं को अपने भीतर समेट लिया, कुछ समय बाद ही उस ज्योति पुंज से एक दिव्य बालक प्रकट हुआ, ब्रह्माजी का पांचवा मुख जो शिव विरोधी बातें कर रहा था उस प्रकाश से प्रकट हुए, उस सुन्दर बालक से प्रश्न करने लगा कि तू कौन है ?

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ब्रह्मा जी के इस बात का उत्तर देने के बजाए वह तेजस्वी बालक जोर-जोर से रुदन करने लगा जो ब्रह्माजी अपने आप को जगत का रचयता होने के अभिमान में चूर हुए जा रहे थे, उन्होंने ने सोचा कि यह बालक मेरे इ पांचवे  की शक्ति से उत्पन्न हुआ है. मद में आकर वे कहने लगे कि तुम मेरी शक्ति से उदय हुए हो और इतना रुदन कर रहे हो, इसलिए आज से तुम्हारा नाम “रूद्र” मै तुम्हारी रक्षा करूँगा. ब्रह्माजी का वचन सुन वह बालक पूर्ण पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गया, अभिमान में भरे ब्रह्माजी उनको वरदान देते गए. उन्होंने कहा कि हे वत्स तुम मेरे मस्तक से उत्पन्न हुए हो, मै तुम्हे भैरव नाम देता हूँ, और मुक्ति दयानी काशी का अधिपति घोषित करता हूँ. 


काशी का अधिपति बनाकर ब्रह्माजी ने एक बार फिर भोलेनाथ का अपमान किया था, जैसे ही काशी का अधिपति भैरव महाराज को बनाया गया, उन्होंने क्रोध में आकर अपने तीखे नाख़ून से ब्रह्माजी के मुख को काट लिया और उसे भूमि पर पटक दिया, और क्रोध में भरे भैरवजी ने ब्रह्मा जी को कहा कि, हे ब्रह्मा तुम्हारा यह पांचवा मुख ही कब से भगवान् श्री शंकर के विरोद्ध प्रलाप कर रहा था, अतः मैंने तुम्हारे शरीर के उस अंग को जिसने यह घौर अपराध किया थे, मैंने उसे काटकर फेंक दिया है, पांचवे मुख के ब्रह्माजी से अलग होते ही ब्रह्माजी को ज्ञान प्राप्त हो गया, और उनका अहंकार वहीँ समाप्त हो गया. 

ब्रह्माजी ने सच्चे ह्रदय से मान लिया कि शिव ही सबसे बड़े व् महा शक्तिशाली है, रभी स्वयं भोलेनाथ वहां प्रकट हुए, उन्होंने भैरवजी से कहा कि चूँकि तुमने ब्रह्माजी के पांचवे मुख को काटा है, अतः तुमको ब्रह्म ह्त्या का पाप लगेगा. अतः तुम उससे मुक्ति पाना चाहते हो तो तीनो लोको में ब्रह्माजी का शीश लेकर व् हाथ में खप्पर लिए भ्रमण करोगे और तुम्हारे पीछे ब्रह्म हत्या देवी पड़ी रहेगी, तुम्हे कहीं भी विश्राम नहीं मिलेगा,कितु जिस स्थान पर ब्रह्माजी का शीश गिरेगा वहीँ पर तुम ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे. ब्रह्माजी सम्पूर्ण त्रिलोक में भ्रमण करते रहे, किन्तु काशी में आकर ब्रह्माजी का शीश गिर गया और भैरवजी ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए, और तभी से भैरव जी को कशी का कुतवाल कहा जाता.   

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